इससे स्पष्ट है कि दृष्टि संवेदन स्वयं ही वस्तु का चेतना में परावर्तन सुनिश्चित नहीं कर देते।
2.
यानि कि यहां ग्राही पर क्षोभक द्वारा पड़ने वाले प्रभाव से दृष्टि संवेदन तो पैदा हो रहे थे, पर प्रत्यक्षमूलक क्षमता के बिना रोगी उस क्षोभक वस्तु का प्रत्यक्ष करने में, उसका वस्तुपरक बिंब अपनी चेतना में परावर्तित करने में असमर्थ था।